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Ishq Pe Kavita Hindi Me - आप हाकिम है आप है हुक्मरान | Hindi Love Poem | Hindi Love Poetry

Ishq Pe Kavita Hindi Me - आप हाकिम है आप है हुक्मरान | Hindi Love Poem | Hindi Love Poetry Ishq Pe Kavita Hindi Me - आप हाकिम है आप है हुक्मरान | Hindi Love Poem | Hindi Love Poetry इश्क़ गर इनायत है उस खुदा की तो कैसे मैं खतावार हुई सिर्फ़ आप ही की ही मुजरिम हूँ जहाँ की मैं कैसे गुनहगार हुई बेकसी का अब ये आलम है वही ख़ता हमसे बार बार हुई उस सिलसिले को कैसे ग़लत कह दूँ जिसको दोहराने की रूह तलबगार हुई ज़िंदगी आप ही की अमानत है चाहे इस पार या उस पार हुई ज़माना उस मंज़र पे रशक खाएगा मुलाक़ात जो किसी सूरत ए हाल हुई आप हाकिम है आप है हुक्मरान दे दे सज़ा गर में खतावार हुई ।। ~ Kosain Gour

Hindi Poem on Rain - घर की खिड़की से जब देखा मैंने | Nature 's Poem

Hindi Poem on Rainघर की खिड़की से जब देखा मैंने | Nature 's Poem

Hindi poem on Rain - घर की खिड़की से जब देखा मैंने, | Nature Poem
Hindi Poem on Rain - घर की खिड़की से जब देखा मैंने, | Nature's Poem


घर की खिड़की से जब देखा मैंने,

मौसम की पहली बरसात को,
काले बादलों की गरज पर नाचती,
बूंदों की बारात को...
एक बच्चा मुझमें से निकलकर,
भागा था भीगने बाहर,
रोका बड़प्पन ने मेरे,
पकड़ के उसके हाथ को..
बारिश और मेरे बचपने के बीच,
इक उम्र की दीवार खड़ी हो गई,
लगता है मेरे बचपन की बारिश भी,
अब बड़ी हो गई.
वो बूंदे कांच की दीवार पर खटखटा रही थीं,
मैं उनके संग खेलता था कभी,
शायद इसलिये मुझे बुला रही थीं,
पर तब मैं छोटा था और ये बातें बड़ी थीं,
तब घर वक्त पर जाने की किसे पड़ी थी,
सावन जब चाय और पकोड़ों की सोहबत में,
इत्मिनान से बीतता था,
फिर वो दौर... वो घड़ी...
बड़ी होते होते कहीं खो गई,
लगता है मेरे बचपन की बारिश भी,
अब बड़ी हो गई..


~ Priti Mishra/ Tiya



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